Add To collaction

प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 30)






अरुण थोड़ी देर तक उस ढाबे के सामने खड़ा रहा, उसके मस्तिष्क में विचारों का भंवर हिलोरें मार रहा था। न चाहते हुए भी बार बार उन मासूमों के दृश्य उसकी आंखों के सामने चलचित्र की भांति चलने लगते। उसने अपनी सारी ताक़त झोंक दी मगर ब्लैंक का एक बाल तक न उखाड़ सका। अचानक ही अरुण अपने आप से शर्मिंदा होने लगा था, उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो अभी अभी उल्टी कर देगा। खाना खाने से दिमाग में थोड़ी ताजगी और स्फूर्ति आयी थी मगर उसके दिमाग में चल रहे ख्यालों की आपाधापी में वो सब कहीं खो सा गया था। वह सड़क के किनारे बने पत्थर के एक बेंच पर बैठ गया, उसका मुँह लटका हुआ था, बुझी बुझी सी आँखे जैसे अपना तेज खो चुकी थीं, चेहरे पर कोई रौनक थी। उसके सीने में जाने कब से दबी भावनाओं ने उथल पुथल शुरू कर दिया, वह इन सब का खुद को ही जिम्मेदार मान रहा था, उसकी आँखों से आँसुओ की पतली सी धार बह निकली, अरुण ने अपने दाएं हाथ से बाएं कंधे पर लगे जख्म को जोर से दबा दिया।

"मैं काबिल नहीं हूँ!" लंबी सांस छोड़ते हुए अरुण ने सिसकते चिल्लाते हुए कहा। उसकी सिसकियों के साथ आँखे भी लाल होती जा रही थी, उन में फिर गुस्सा भरता ही जा रहा था।

"मुझे कितनी उम्मीद के साथ ये केस सौंपा गया था, और मैंने क्या किया? लोग फालतू में हीरो बना देते हैं…! अरे जो अपने अपनो को न बचा….!" अरुण बुरी तरह आत्मग्लानि से भर गया था, जाहिर था ये खाना खाना उसको रास न आया था, उसने सोचा था कि जल्दी से ब्लैंक को खत्म करेगा और सब ठीक हो जाएगा मगर उसे अंदाजा तक नहीं था यह सब इतना अधिक पेचीदा हो सकता था।

"क्यों? क्यों? हर बार यही क्यों? मेरे साथ हमेशा यही क्यों होता है?" अरुण ने बेंच से उठते हुए जोर से घूसा मारा, वह पत्थर किसी शीशे की भांति बुरी तरह चटक गया था। अरुण की हथेली से खून बहने लगा।

'शांत हो जा अरुण! पहले की तरह दिमाग से सोच, अपने लोगो से कॉन्टैक्ट कर। अगर तुझे ब्लैंक को खत्म करना चाहता है तो उसकी तरह सोच, हर वक़्त गुस्सा…! ये कभी ठीक नहीं होता, तू तो अब प्यार भूल ही गया है!' अरुण के अंतर्मन से स्वर उभरा, वह घास पर बैठकर किसी मासूम छोटे बच्चे की तरह रोने लगा।

'ये रोने का वक़्त नहीं है अरुण! शेर बन। उखाड़ दे उन हाथों को जिन्होंने उन मासूमों की जान ली मगर खुद पर काबू रख, अपने जख्मों की परवाह कर, तू गुस्से में इतना पागल हो जाता है कि…!' अरुण जैसे खुद ही खुद को समझा रहा था।

"नहीं…! अब अरुण ऐसा ही है।" वह चिल्ला पड़ा।

'ऐसा अरुण? नहीं ये अरुण नहीं हो सकता! अरुण के पास एक मासूम दिल था? वो अब तुम्हारे पास नहीं है।' अरुण शायद वर्षों के बाद आज इतना आँसू बहा रहा था, अपने आप से लड़ते हुए, खुद को समझा पाना कितना मुश्किल काम है, नियर इम्पॉसिबल! लेकिन कुछ न कुछ तो तय करना ही होता है, नहीं तो फिर आगे बढ़ने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं।

'ये एक जंग है अरुण!' उसके अंतर्मन ने उसे झिंझोड़ा।

"और अरुण कोई जंग नहीं हारता।" अरुण अपने भीतर चल रहे भावों के उथल पुथल में घिरा हुआ था।

'सच को देखो! अपने दिल पर हाथ रखकर यही बात बोलो क्या तुम यही बात बोल सकते हो? नहीं अरुण! तुम कभी नहीं जीते, मगर इस बार तुम्हें जीतना ही होगा उन मासूमो के लिए!' अरुण अपने आप से ही एक जंग लड़ रहा था, इस युद्ध में खून की तो नहीं पर आँखों से आँसुओ की बरसात हो रही थी।

"तुम्हें ये क्यों लगता है कि मैं तुम्हारी बात सुनूंगा? अरुण सिर्फ करता है, सोचना अरुण का काम नहीं है।" अरुण अब भी खुद का विरोध कर रहा था।

'क्या सचमुच? अब तुम हरेक सच को झुठला रहे हो। माना कि तुम्हें शिखस्त मिली, तुमने सब कुछ खो भी दिया! मगर अरुण के मरने के जिम्मेदार तुम खुद होगे। अगर बदला लेना है तो हर एक कदम सोच समझकर रखना होगा, रोना या खुद को ब्लेम करते रहने से कुछ नहीं होता।'

"आह!" अरुण ने एक लंबी सांस छोड़ी, और अपने आँसुओ को पोछते हुए खड़े हो गया। अरुण के आँखों की चमक बता रही थी कि उसने कोई निर्णय अवश्य ले लिया पर समझ नहीं आ रहा था कि उसके अंतर्मन ने उसपर विजयी हासिल की या फिर बदले हुए अरुण के बदले की भावना ने।

अरुण उठा और शहर की तरफ बढ़ता चला गया, थोड़ी देर बाद एक मोड़ के दुसरी ओर टेलीफोन बूथ दिखाई देने लगा, वह जल्दी से बूथ में प्रवेश कर गया। वैसे आजकल इसका कोई अधिक प्रयोग नहीं करता था मगर यह अच्छी बात थी कि वह अभी भी चालू हालत में था। अरुण ने जल्दी से कुछ नंबर डायल किया, रिंग जाने लगी, थोड़ी देर बाद किसी ने फ़ोन रिसीव किया।

"हेलो मैं अरुण बोल रहा हूँ!" अरुण ने कहा, दूसरी तरफ से कुछ बोला गया।

"मैं जल्दी ही वहाँ पहुँचता हूँ! मेरे लिए मेरी बाइक, कपड़े और नए फ़ोन का इंतज़ाम करके रखना। बाकी बातें वही पहुँचकर करूँगा।" कहते हुए अरुण ने कॉल कट कर दिया। वह तेजी से बाहर निकला और गलियों में गुम हो गया। शायद इस बार अरुण का अंतर्मन उसके बदले से जीत गया था मगर यह सब भी हिसाब बराबर करने के लिए था।

■■■■■

"हे क्या चल रहा है?" अनि ने कॉल पर किसी से बात करते हुए कहा। उसने क्रेकर को सड़क के किनारे रोका हुआ था और खुद टहलते हुए बात कर रहा था।

"साँसे तो चल रही हैं फिलहाल!" उधर से पियूषा का मासूम सा स्वर उभरा।

"यार नेक्स्ट टाइम से पप्पा को बता के अंदर जइयो! मुझे मासूम इन्नोसेंट को टेक्नोटेन्ट बना देते हैं! भुट्टा की तरह भूंज कर भुरता बनाने वाले थे वो मेरी!" अनि ने रोंदू सा मुँह बनाते हुए रोतलु स्वर में कहा।

"अरे यार मैं यही पार्क में घूमने गयी थी, अचानक कर्फ्यू लग गया अब यहीं शरण लेकर चरण धूलि मल रही हूँ! ऊपर से यहां फोन ऑफ हो गया था, और चार्जर कहीं मिलता नहीं, अभी मिला एक पुलिस अंकल से मंगाया था तो, वो बोले लाएंगे पर लाने में तीन दिन लगा दिए!" पियूषा ने बड़ी मासूमियत से कहा।

"तो कम से कम पप्पा जी को तो बता देती! पता है झप्पा झप्पा करके झप्पटा मार के झापड़ मारने वाले थे मुझे पप्पा जी, वो तो बुध-बृहस्पति मनाओ कि हम उनकी नरजो के सामने नहीं तो उनकी चरणधूलि हमारे पूरे शरीर पर लग चुकी होती।" अनि ने ऐसे बयाँ कर बताया जैसे उसपर कितनी बड़ी गाज टूटी हुई थी।

"अनि! आखिर बड़े कब होंगे तुम?"  पियूषा बुरी तरह झुंझलाते हुए बोली।

"पूरे छः फ़ीट का हो तो चुका हूँ यार, अब क्या बिजली के खम्बे जितना बड़ा हो जाऊं? बार बार दरवाजे के सामने झुकना पड़ता है वो किसी को न दिखता.. आउर कभी कभी तो सिर ही फुट जाता है, किसी ने दरवाजो को बड़ा क्यों नहीं बनाया? हाये रे दुख!" अनि ने अपने सिर को सहलाते हुए ऐसे बोला जैसे उसके सिरपर वाकई चोट लगी हुई हो।

"मेरा मतलब उस बड़े से नहीं था।" पियूषा ने स्पष्ट किया।

"ठीक है, फिर बड़े से था? एफिल टॉवर बन जाऊं मैं? और तुमने बताया नहीं कि पप्पा जी को क्यों नहीं बताया और अभी तुम कहाँ हो?" अचानक अनि का लहज़ा सीरियस हो गया, जिसमें से बनावट की बू आ रही थी।

"नहीं तुम न माउंट एवरेस्ट बन जाओ भोंदू कही के, हाइट बढ़ गयी लेकिन…! जाने दो।
और मैंने अंकल को इसलिए कॉल नहीं किया क्योंकि मैं कर ही नहीं सकती थी, उन अंकल का भी फ़ोन डेड था। और मुझ मासूम पर कोई रहम न खाता, उन्होंने चार्जर लाने को कहा था मगर दो दिन बाद आ रहे!" बताते बताते पियूषा मायूस हो गयी।

"तो किसी को बोल कर छुड़वा लेती न रूम तक! खैर जाने दो, अपने बाल - बच्चों का ख्याल रखना!" अनि ने ऐसे कहा जैसे वह फोन रखने को उतावला हो रहा हो।

"क्या कहा तुमने? बाल - बच्चों? और कर्फ़्यू में कौन छोड़ता मुझे?" पियूषा बिफर पड़ी।

"नहीं! मैंने ऐसे नहीं कहा! मैंने कहा अपने बाल, बच्चों का ख्याल रखना!" अनि ने शरारत भरे लहजे में कहा।

"तुम ही करो ये सब, अभी मैं अंकल के रूम पे पहुँचने वाली हूँ! तुम तो बताओगे नहीं कि कहां हो, सो… रहो गड्ढे में!" पियूषा ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।

"क्या? क्या कहा आपने मिस प्याऊ जी?" अनि ने ऐसे पुछम जैसे उसे क्या ही कह दिया गया हो।

"कुछ नहीं, मैंने कहा रहो गद्दे में। अब बाये! बाये! अंकल जी गेट पर ही खड़े हैं।" कहते हुए पियूषा ने कॉल कट कर दिया।

"क्यों भई तोड़ू फोड़ू! अब खाली स्थान भैया का मूल स्थान पता कर लिया जाए?" अनि ने क्रेकर पर सवार होते हुए कहा, अगले ही पल क्रेकर जंगल की ओर बढ़ चला, मगर थोड़ी ही देर बाद वे कैम्पटी फाल्स जाने वाले रास्ते पर मुड़ गए।

■■■

"शिखस्त? इसे तुम शिखस्त कहते हो? अभी तो खेल का असली मजा आएगा!" ब्लैंक अपने सामने खड़े नकाबपोश पर बरसते हुए कहा, उसके हाथों में एक गोल्डन पिस्टल चमक रही थी। "बुलैरिश आर्मी इन सब शब्दों से परे है पीटर! हम लोग या तो जीतते हैं या कुर्बान हो जाते हैं।" ब्लैंक ने जोर से चिल्लाते हुए कहा। पीटर अब भी सिर झुकाए खड़ा था।

"माफ कर दो बॉस! आगे से ऐसी गलती नहीं होगी!" पीटर उसके पांवों में लोटते हुए विनती करने लगा।

"ब्लैंक के पास फीलिंग्स ब्लैंक है बच्चे! यहां किसी को दूसरी गलती दोहराने का अवसर नहीं मिलता।" कहते हुए ब्लैंक ने धांय धांय दो फायर किए, गोली पीटर के सिर और पीठ को चीरते हुए जमीं में पेवस्त हो गयी। उसके खून से वहां का फर्श लाल हो गया, दो तीन आदमियों ने जल्दी से उसके शव को हटाकर उस जगह
को साफ किया। ब्लैंक अपनी पिस्टल के उगलते धुंए को सूंघते हुए लंबी साँस लिया।

"ये मेरी दुनिया है यारों! यहां बस आने का रास्ता है, जाने के लिए कोई रास्ता नहीं। जो यहां से जाता है सीधा नरक ही जाता है हाहाहा….! मैं औरों की तरह बहत्तर हूरों का सपना नहीं दिखाता, कुछ ही दिनों में हम पूरी दुनिया के मालिक होंगे। हाहाहा…!यहां हर ओर सिर्फ हमारा राज होगा।" ब्लैंक ने जोर जोर से अट्ठहास कड़ते हुए कहा। "मगर याद रहे जो शब्द ब्लैंक की डिक्शनरी में नहीं हैं, उनका भूलकर भी अपने मन में ख्याल तक नहीं लाना।"

"ओके बॉस!   हम जीयेंगे हमारा मकसद! हम जीतेंगे हमारा मकसद!" सभी ने एक और में कहा।

"और रही बात उस सस्पेंडेड इंस्पेक्टर या उस दो टके के एजेंट की तो उन्होंने आज तक हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाया है, वो तो किस्मत उनके साथ है इसलिए बार बार बच निकलते हैं, एक बार को तो इस चूहे बिल्ली के खेल में मुझे भी इंटरेस्ट आने लगा था, मगर अब और खेल नहीं! पर मैं चाहता हूँ हमारी जीत वो अपनी आँखों से देखे। हाहाहाहा…!" कहते हुए बेतहाशा हँसने लगा वो, उसके ठहाके से वह पूरा हॉल गूँजने लगा। ब्लैंक अपने सिंहासन की ओर मुड़ा।

"मकसद का आखिरी पड़ाव जल्द ही आएगा, पूरी तैयारी कर लो! जंगल के चारों ओर माइंस बिछी हुई होनी चाहिए। हम जल्द ही 'उसे' हासिल कर लेंगे, फिर होगा सारी दुनिया पर हमारा राज! हम महावृत धारकों का राज!" ब्लैंक अपने सीने पर बने वृत के भीतर वृत, उसमें एक तारा और उसके बीच कुंडली मारकर बैठे नाग के लोगो (LOGO) पर हाथ रखता हुआ सिंहासन पर आसीन होते हुए बोला, सभी ने उसका अनुसरण करते हुए उस चिन्ह पर अपना हाथ रखा।

"एक पवित्र मकसद के लिए…!"  एक ने जोर से नारा लगाया।

"अपनी आन बान जान सब कुर्बान कर देंगे!" सभी ने एक साथ जोर से चिल्लाकर कहा।

"इस महावृत चिन्ह का अर्थ है कभी दगा न देना, अन्यथा जीवन मृत्यु से भी बदतर हो जाएगा। हमारी दुनिया में भय और गद्दारी का कोई स्थान नहीं है। हम जो भी करेंगे, हमारे मक़सद के लिए!" ब्लैंक ने खूंखार स्वर में कहा, थोड़ी ही देर में वह हॉल खाली हो गया। ऐसा लग रहा था मानो ब्लैंक ने पीटर को सबके सामने सजा देने के लिए उन सभी को वहां बुलाया हुआ था। अभी उस विशाल हॉल में बस दस-पन्द्रह नकाबपोश ही मौजूद थे।

"अंतिम चरण की तैयारी करो?" कहता हुआ ब्लैंक वहां से निकल गया।

क्रमशः...


   6
1 Comments

Yah bhag tin bhagon me bta hua tha... Pahle arun. Fir Ani fir blank. Soch samjhkar plot bnakr likha gya part lg rha. 👌 Pura bhag baki bhago se ekdm alg tha.👏 Arun ki bhavukta... Ani ka drama... Piyusha ka Ani k liye chinta sab kuch is episode me ek alg anubhv diya padhne ka. Ye accha hua ki piyusha mil gayi. Pr usme bhi sbse alg "ek pvitr mksd k liye" blank aur admiyo ka ek pratigya ki trh chillana tha... Kahani aur interesting ho gayi hai... Ki blank aur uske admi pvitr mksd? Ekdm hi alg hai.. ye janne me bahut mja ayega. Aur us vrit chinh k bare me bhi thoda detai me pta laga ye bhi badhiya laga👌 Syd blank dusre ayam tha is episode me... Esa lga padhte vakt. Sabhi characters ki bhavnao ki trh, dialogues bhi nya anubhv dene wale the 👌 Aur piyusha k liye jaise vrnn kiya gya hai uski bhavnaye aur vrtni vyakt ka tarika... Usse to lg rha hai ki Ani man hi man piyusha ko psnd krta hai. Dekhte hai aage kya nikalkar ata hai. Qki isme asha urf nirasha ji bhi to hai😂 love triangle chalega fir to. Waise ye janne ki aur ruchi hai ki ye blarish army akhir chij kya hai... Mtlb isi ayam k log hai ya dusre. Aur sabhi k seene pr wo vrit wala chinh? Mtlb sabhi ek hi jnjati k hai to usme king blank hi q hai? Aur koi q nh!!

Reply